ALL ABOUT GSTR 1 TO 12

 GSTR 1 से लेकर GSTR 12 तक अलग-अलग GST रिटर्न होते हैं, जिन्हें विभिन्न प्रकार के करदाताओं को अलग-अलग समय पर दाखिल करना होता है। आइए हम इन रिटर्न्स को एक-एक करके समझते हैं और ये क्यों फाइल करते हैं:

1. GSTR 1:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न सभी GST पंजीकृत व्यवसायों को अपनी बिक्री (outward supplies) की डिटेल्स रिपोर्ट करने के लिए हर महीने या तिमाही में फाइल करना होता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: GSTR 1 में आपको अपनी सभी आउटवर्ड सप्लाई (विक्री) की डिटेल्स देनी होती हैं, जैसे कि:

    • B2B (Business to Business) और B2C (Business to Consumer) बिक्री

    • निर्यात (Export) और संशोधित (Credit/Debit Notes)

  • यह रिटर्न GSTR 3B के लिए आधार होता है, क्योंकि GSTR 1 में दी गई जानकारी को GSTR 3B में टैली किया जाता है।

2. GSTR 2A:

  • कब फाइल करते हैं: यह एक ऑटो-जनरेटेड रिटर्न होता है, जो GSTR 1 से जुड़े लेन-देन की जानकारी को अपने आप डाउनलोड करता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: इसका उद्देश्य यह होता है कि करदाता अपनी खरीद (inward supplies) और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) को सही से रिपोर्ट कर सके। GSTR 2A में दी गई जानकारी से आपको यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि क्या आपके पास सही टैक्स क्रेडिट है या नहीं।

3. GSTR 2:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न कभी भी लाइव नहीं हुआ, बल्कि इसे GSTR 2A के रूप में बदल दिया गया है। GSTR 2 में खरीदी की डिटेल्स देने का प्रावधान था।

4. GSTR 3B:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न हर महीने फाइल करना होता है, जो सभी करदाताओं द्वारा अपनी कुल देनदारी (tax liability) और ITC का दावा करने के लिए दाखिल किया जाता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: इसमें करदाता को अपनी कुल बिक्री, खरीद और टैक्स (output और input tax) की डिटेल्स देनी होती है। इसमें फॉर्मल टैक्स पेमेंट किया जाता है। GSTR 3B को GSTR 1 की डिटेल्स के आधार पर दाखिल करना होता है।

5. GSTR 4:

  • कब फाइल करते हैं: कॉम्पोजीशन स्कीम के तहत पंजीकृत करदाताओं को हर तिमाही GSTR 4 फाइल करना होता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: GSTR 4 में सिंप्लिफाइड टैक्स रिटर्न दाखिल करना होता है। इसमें आपको अपनी बिक्री, खरीद, और टैक्स देनदारी की जानकारी देनी होती है। यह उन करदाताओं के लिए है जो कॉम्पोजीशन स्कीम में हैं, ताकि वे कम टैक्स दरों पर टैक्स का भुगतान कर सकें।

6. GSTR 5:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न नॉन-रेसिडेंट विदेशी करदाता द्वारा हर महीने दाखिल किया जाता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: यह रिटर्न नॉन-रेसिडेंट विदेशी करदाता को अपनी भारत में की गई बिक्री और टैक्स देनदारी की जानकारी देने के लिए फाइल करना होता है।

7. GSTR 6:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न Input Service Distributors (ISDs) को हर महीने फाइल करना होता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: ISDs को अपनी खरीदी (इनपुट सेवाएं) और जो भी ITC ट्रांसफर किया गया है उसकी डिटेल्स देनी होती हैं।

8. GSTR 7:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) के तहत हर महीने फाइल किया जाता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: इसमें TDS से संबंधित विवरण होता है, जो करदाताओं ने दूसरे करदाताओं से टैक्स काटा और जमा किया है, उसकी जानकारी देना होता है।

9. GSTR 8:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न E-commerce operators द्वारा हर महीने फाइल किया जाता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: इसमें E-commerce platforms द्वारा जो बिक्री पर GST कटौती की जाती है उसकी जानकारी दी जाती है, जैसे Amazon या Flipkart जैसी वेबसाइट्स।

10. GSTR 9:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न हर साल फाइल किया जाता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: GSTR 9 Annual Return है जिसमें आपको पूरी साल की बिक्री, खरीद और टैक्स देनदारी की जानकारी देनी होती है। इसमें GSTR 1 और GSTR 3B की डिटेल्स को समेकित किया जाता है।

11. GSTR 9C:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न हर साल फाइल करना होता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: GSTR 9C में ऑडिट रिपोर्ट और Tax Reconciliation Statement होती है, जिसमें सालभर के डेटा को सही से रिपोर्ट किया जाता है।

12. GSTR 12:

  • कब फाइल करते हैं: यह रिटर्न GST Refund के लिए होता है, और इसे तब फाइल किया जाता है जब कोई refund claim करना होता है।

  • क्यों फाइल करते हैं: यह रिटर्न खासतौर पर उन करदाताओं के लिए होता है जो GST Refund का दावा करते हैं, जैसे कि निर्यातक (exporters) या अन्य ऐसे व्यवसाय जो टैक्स के अधिक भुगतान की स्थिति में होते हैं।


निचोड़:

सभी इन रिटर्न्स को अलग-अलग उद्देश्यों के लिए फाइल किया जाता है, जैसे कि विक्री, खरीद, टैक्स पेमेंट, टैक्स क्रेडिट, TDS, और refunds। ये रिटर्न GST सिस्टम में टैक्स की पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होते हैं। इनका उद्देश्य यह है कि करदाताओं की सही तरीके से निगरानी की जा सके और करों का सही तरीके से भुगतान किया जा सके।




GST

GST (वस्तु एवं सेवा कर) एक अप्रत्यक्ष कर है जो वस्तुओं और सेवाओं पर पूरे देश में एक समान रूप से लगता है।


TYPE OF GST :-

 GST 4 प्रकार का होता है:


1. CGST (Central GST):

एक ही राज्य के अंदर बिक्री पर केंद्र सरकार को मिलने वाला टैक्स।


2. SGST (State GST):

एक ही राज्य में बिक्री पर राज्य सरकार को मिलने वाला टैक्स।


3. IGST (Integrated GST):

एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री पर लगने वाला टैक्स, जो केंद्र सरकार को जाता है।


4. UTGST (Union Territory GST):


केंद्र शासित प्रदेशों में बिक्री पर लगने वाला टैक्स, जो केंद्र सरकार को जाता है।

UNION TERRITORY 

संघ राज्य क्षेत्र (Union Territory) वह क्षेत्र होते हैं जो सीधे भारत सरकार के नियंत्रण में होते हैं, यानी इन पर राज्य सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार का शासन होता है।


भारत के संघ राज्य क्षेत्र के नाम (2025 तक):


1. दिल्ली

2. चंडीगढ़

3. पुडुचेरी

4. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

5. लक्षद्वीप

6. दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव

7. लद्दाख

8. जम्मू और कश्मीर

GST में Regular और Composition Registration का फर्क (संक्षेप में):


Regular Scheme:

जब सालाना टर्नओवर ₹40 लाख (सामान्य राज्य) या ₹20 लाख (विशेष राज्य) से ज़्यादा हो।

इंटरस्टेट सप्लाई या E-commerce के ज़रिए बेचते हो।

ITC (Input Tax Credit) लेना हो।


Composition Scheme:

जब सालाना टर्नओवर ₹1.5 करोड़ (सामान्य राज्य) तक हो।

सिर्फ इन्ट्रास्टेट (राज्य के अंदर) व्यापार हो।

कम टैक्स दर (1% या 5%) देना हो लेकिन ITC नहीं मिलेगा।



कौन-सा चुनना है ये आपके व्यापार के प्रकार और टर्नओवर पर निर्भर करता है।


आपका व्यापार किस तरह का है?



QRMP 

योजना: छोटे व्यापारियों के लिए योजना जिसमें हर महीने टैक्स जमा होता है और हर 3 महीने में रिटर्न फाइल होती है।

DSC

 (Digital Signature Certificate):

डिजिटल सिग्नेचर से रिटर्न या डॉक्यूमेंट ऑनलाइन साइन करने का तरीका।


EVC 

(Electronic Verification Code):

OTP के ज़रिए मोबाइल/ईमेल से रिटर्न वेरिफाई करने का तरीका।


दोनों से GST रिटर्न वेरिफाई किया जाता है।

E-Invoice

 (ई-इनवॉइस):

GST के तहत बड़ी कंपनियों द्वारा बनाई गई इनवॉइस का पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन। इससे हर इनवॉइस का यूनिक नंबर (IRN) बनता है।


किसके लिए ज़रूरी:

जिनका टर्नओवर ₹5 करोड़ या उससे ज़्यादा है।

E-Way Bill 

(ई-वे बिल):


यह एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ है जो ₹50,000 या उससे अधिक के माल की एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही के लिए जरूरी होता है।


उद्देश्य: माल की आवाजाही पर निगरानी और टैक्स चोरी रोकना।


(GSTIN) का एक उदाहरण लेते हैं: 19AAHCB1234C1Z5


इसका मतलब:


1. 19 - राज्य कोड (यहां "19" पश्चिम बंगाल (WB) का कोड है)

2. AAHCB1234C - पंजीकृत व्यापार का PAN (Permanent Account Number)

3. 1 - व्यवसाय का प्रकार (यहां 1 का मतलब सामान्य व्यवसाय)

4. Z5 - चेक डिजिट (यह जांच के लिए होता है)


यह GSTIN एक विशेष व्यवसाय के लिए है जो पश्चिम बंगाल में रजिस्टर्ड है।

HSN

 (Harmonized System of Nomenclature):

यह एक वस्तुओं के वर्गीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रणाली है, जो 8 अंकों में होती है। इसे GST में सामान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण: 0101 (जीवित घोड़े)।



SAC

 (Services Accounting Code):

यह एक सेवाओं के वर्गीकरण को दर्शाने वाला कोड है, जो 4 अंकों का होता है। इसे GST में सेवाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण: 9983 (कंसल्टिंग सेवाएं)।

: Taxable:

वस्तु या सेवा पर GST लागू होती है और उसे कर देना होता है।

Exempt:


वस्तु या सेवा पर GST नहीं लगता, यानी कर मुक्त होती है।


Nil Rated:

वस्तु या सेवा पर GST लागू होता है, लेकिन दर 0% होती है (कोई कर नहीं लिया जाता)।


Non-GST:

वस्तु या सेवा पर GST लागू नहीं होता क्योंकि यह GST के दायरे से बाहर होती है (जैसे शराब, पेट्रोल)।

: B2B (Business to Business):

यह वह लेन-देन होता है जिसमें दो व्यवसायों के बीच व्यापार होता है। उदाहरण: एक कंपनी दूसरी कंपनी को सामान या सेवाएं बेचती है।


GST में:

B2B ट्रांजेक्शन्स पर GST लागू होता है और इनपुट टैक्स क्रेडिट भी मिलता है।

 B2C (Business to Consumer):

यह वह लेन-देन होता है जिसमें व्यवसाय और उपभोक्ता (ग्राहक) के बीच व्यापार होता है। उदाहरण: एक दुकान ग्राहक को सामान बेचती है।


GST में:

B2C ट्रांजेक्शन्स पर GST लागू होता है, लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता।

 Export Invoice (निर्यात इनवॉइस):

यह एक वाणिज्यिक इनवॉइस होती है जो भारत से अन्य देशों में माल भेजने के लिए बनाई जाती है। इसमें GST लागू नहीं होता, क्योंकि निर्यात पर GST का शून्य दर होती है।


महत्वपूर्ण जानकारी:


1. GSTIN

2. स्मारक संख्या (IRN)

3. शिपमेंट की जानकारी

4. कस्टम ड्यूटी और अन्य शुल्क

 Debit Note (डेबिट नोट):

यह एक दस्तावेज़ है जिसे व्यापारी द्वारा ग्राहक को भेजा जाता है, जब उसे किसी रिटर्न, मूल्य में कमी या अधिक शुल्क के कारण अधिक पैसे प्राप्त हुए हों। यह ग्राहक के खाते में ऋण (debt) बढ़ाता है।


Credit Note (क्रेडिट नोट):

यह एक दस्तावेज़ है जिसे व्यापारी द्वारा ग्राहक को भेजा जाता है, जब किसी रिटर्न, मूल्य में बढ़ोतरी या गलत बिलिंग के कारण ग्राहक को अधिक भुगतान किया गया हो। यह ग्राहक के खाते में कृत्रिम क्रेडिट (credit) प्रदान करता है।


 Amendment (संशोधन):

GST में अमेंडमेंट का मतलब है किसी पहले दिए गए रिटर्न, इनवॉइस, या डॉक्यूमेंट में सुधार या परिवर्तन करना।


उदाहरण:


1. GST रिटर्न में गलती हो तो उसे सुधारने के लिए अमेंडमेंट किया जाता है।



2. इनवॉइस में त्रुटि होने पर उसे अमेंड किया जा सकता है।




यह प्रक्रिया करदाताओं के लिए अपनी गलती सुधारने का तरीका है।

B2C Small & Large:


1. B2C Small (Small Businesses):

यह वह व्यापार होते हैं जिनमें कम टर्नओवर होता है और छोटे उपभोक्ताओं के साथ लेन-देन होता है। इन पर GST लागू होता है, लेकिन वे इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा सकते।


2. B2C Large (Large Businesses):

यह बड़े व्यापार होते हैं जिनका उच्च टर्नओवर होता है और बड़े उपभोक्ताओं के साथ व्यापार करते हैं। इन पर भी GST लागू होता है, लेकिन बड़े व्यवसायों को इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मिल सकता है।




मुख्य अंतर टर्नओवर और उपभोक्ताओं के आकार पर आधारित है।


Advance Receipt पर टैक्स देयता (Tax Liability on Advance Receipt):

जब कोई व्यापार अग्रिम भुगतान (advance) प्राप्त करता है, तो GST उस समय लागू होता है, न कि जब सामान या सेवा की आपूर्ति होती है।


कैसे काम करता है:


अग्रिम भुगतान प्राप्त होने पर, व्यापारी को उस राशि पर GST चुकाना होता है, भले ही सामान या सेवा बाद में दी जाए।


यह "Taxable event" तब होता है जब अग्रिम राशि प्राप्त होती है।



उदाहरण:

अगर किसी ग्राहक से ₹10,000 का अग्रिम भुगतान लिया गया है, तो उस पर GST (उपयुक्त दर के अनुसार) लागू होगा।

 Adjustment of Advance Receipt (अग्रिम राशि का समायोजन):

जब कोई व्यापार अग्रिम भुगतान प्राप्त करता है और बाद में उस राशि को आपूर्ति के समय समायोजित करता है, तो उसे GST के हिसाब से समायोजन करना होता है।


कैसे होता है:


1. अग्रिम प्राप्ति पर GST जमा किया जाता है।



2. जब सामान/सेवा प्रदान की जाती है, तो अग्रिम राशि को बिल पर समायोजित कर लिया जाता है।



3. यदि बाकी राशि है, तो उस पर GST अलग से लागू होता है।




उदाहरण:

अगर ₹10,000 का अग्रिम लिया गया और बाद में ₹15,000 का बिल बनता है, तो 5,000 पर GST अलग से लगेगा।

: GST में कुल 11 प्रकार के फॉर्म होते हैं, जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं। यहां प्रमुख फॉर्म्स की सूची दी जा रही है:


1. GSTR-1 – आपूर्ति का रिटर्न (वस्तु/सेवा की बिक्री का विवरण)



2. GSTR-2 – इनपुट टैक्स क्रेडिट का विवरण (अब इसे GSTR-2A में सम्मिलित कर दिया गया है)



3. GSTR-3 – सारांश रिटर्न (विभिन्न जानकारी का समग्र विवरण)



4. GSTR-3B – मासिक रिटर्न (कर भुगतान का विवरण)



5. GSTR-4 – ऑप्टेड लघु व्यवसाय के लिए रिटर्न (Composition Scheme के तहत)



6. GSTR-5 – नॉन-रेजिडेंट टैक्सपेयर्स का रिटर्न



7. GSTR-6 – Input Service Distributor (ISD) का रिटर्न



8. GSTR-7 – TDS (Tax Deducted at Source) रिटर्न



9. GSTR-8 – E-commerce ऑपरेटर द्वारा TCS (Tax Collected at Source) रिटर्न



10. GSTR-9 – वार्षिक रिटर्न (साल भर का सारांश)



11. GSTR-9C – ऑडिट रिपोर्ट (व्यापारी द्वारा ऑडिट करवाना होता है)




इन फॉर्म्स के माध्यम से व्यापारियों को अपनी GST रिपोर्टिंग और भुगतान के कार्य पूरे करने होते हैं।

 GST Audit:

GST ऑडिट एक प्रक्रिया है, जिसमें GST कानून के तहत एक अधिकृत चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) या सीए की टीम द्वारा व्यापारियों के GST रिटर्न और लेन-देन का परीक्षण किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि व्यापारी GST कानून के तहत सही ढंग से अनुपालन कर रहे हैं।


GST Audit की आवश्यकता:


1. Annual Turnover ₹5 करोड़ से अधिक होने पर ऑडिट अनिवार्य है।



2. अगर व्यापार GST रिटर्न में कोई गलती या विसंगतियां पाता है, तो ऑडिट से उन्हें सुधारा जा सकता है।




GST ऑडिट के प्रकार:


1. GST-9 – वार्षिक रिटर्न ऑडिट



2. GST-9C – ऑडिट रिपोर्ट (चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा दी जाती है)




लाभ:


Compliance की पुष्टि


Input Tax Credit का सही उपयोग


किसी भी गलती या गड़बड़ी का पता चलता है

 ITC (Input Tax Credit):

ITC का मतलब है इनपुट टैक्स क्रेडिट, जो व्यापारियों को GST पेमेंट करने के बाद आपूर्तियों से टैक्स के रूप में मिलने वाला क्रेडिट है। इस क्रेडिट का उपयोग GST की देयता (liability) को कम करने के लिए किया जाता है।


कैसे काम करता है ITC:


1. जब आप किसी सामान या सेवा का खरीदारी करते हैं, तो आप GST भुगतान करते हैं।



2. यदि आप एक registered GST व्यापारी हैं, तो उस टैक्स का क्रेडिट आपको अपनी GST देयता से घटाने का अधिकार होता है।



3. ITC का उपयोग तब किया जा सकता है जब आप सामान या सेवाओं का व्यवसायिक उद्देश्य से उपयोग कर रहे हों।




शर्तें:


GSTIN वाले व्यापारियों के पास सही इनवॉइस होना चाहिए।


Input Tax Credit केवल उन वस्तुओं या सेवाओं के लिए लिया जा सकता है, जो व्यवसाय में उपयोग हो रही हैं।


GST के नियमों के तहत सही दस्तावेज़ होना ज़रूरी है।



उदाहरण:

यदि आपने ₹10,000 का सामान खरीदा और ₹1,800 GST दिया, तो आप ₹1,800 ITC का दावा कर सकते हैं, जिसे आप अपनी GST देयता से घटा सकते हैं।

 भारत (कोलकाता) से USA को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (TV) निर्यात करते समय GST और अन्य करों का विवरण:


1. GST:


निर्यात पर GST शून्य (0%) होता है। यानी, जब आप भारत से विदेश (USA) को सामान भेजते हैं, तो आपको GST नहीं देना होता। इसके बजाय, आपको Input Tax Credit (ITC) का लाभ मिलता है, यदि आपने पहले इनपुट टैक्स चुकाया है।




2. Customs Duty (USA):


USA में आयात करते समय कस्टम ड्यूटी लागू होती है। कस्टम ड्यूटी का निर्धारण USA के आयात कर्तव्यों (import duties) और TV के प्रकार (HSN code) पर आधारित होता है।


अमेरिका में Tariff Rate अलग-अलग उत्पादों के लिए होता है, और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस (TV) पर import duty  5-10% तक हो सकता है, लेकिन यह HS Code और अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।


इसके अलावा, अमेरिका में कुछ राज्य Sales Tax भी ले सकते हैं, जो राज्य के हिसाब से अलग हो सकता है।




3. Export Documentation:

आपको Export Invoice बनानी होगी।

E-Way Bill और Export Declaration जैसे कागजात की जरूरत पड़ेगी।



निष्कर्ष:

भारत से USA को TV निर्यात करते समय GST शून्य दर पर होता है, लेकिन USA में कस्टम ड्यूटी लागू हो सकती है, जो उत्पाद और उसके HS Code पर आधारित होती है।




TAX SLAB RATE




GST में सिर्फ 5%, 12%, 18%, और 28% ही नहीं होते — इसके अलावा 0%, 0.25%, 0.5%, 3% जैसे रेट भी होते हैं, जो खास कैटेगरी की चीज़ों पर लगाए जाते हैं। नीचे मैं एक-एक करके समझाता हूँ कि ये रेट किन चीजों पर लगते हैं:


🔵 0% GST (Zero Rated Items):

इन वस्तुओं पर कोई टैक्स नहीं लगता। ये ज़रूरी और आम उपयोग की चीजें होती हैं।

उदाहरण:

  1. अनाज (गेहूं, चावल, दालें)

  2. दूध (खुला)

  3. सब्ज़ियां और फल (कच्चे और बिना पैक किए हुए)

  4. नमक

  5. किताबें (शैक्षणिक)

  6. हैंडमेड चीजें (कुछ चुनिंदा)

  7. सरकारी स्कूलों की सेवाएं

  8. ब्लड और ब्लड से जुड़ी चीजें

  9. खेती के लिए बीज

  10. प्राकृतिक जल (पानी)


🟠 0.25% GST:

ये रेट सिर्फ अर्ध-कीमती पत्थरों (Semi-precious stones) पर लगता है।

उदाहरण:

  1. कटे-पॉलिश किए हुए पत्थर (जैसे ज़िरकोन, टोपाज़)

  2. जेमस्टोन जो जूलरी में लगते हैं

  3. कुछ मणि (precious & semi-precious) की रॉ फॉर्म

  4. कस्टम जूलरी मटीरियल

  5. सिंथेटिक स्टोन्स

  6. लैब में बने डायमंड

  7. कुछ खास एक्सपोर्ट क्वालिटी के मणि

  8. हैंडीक्राफ्ट्स में इस्तेमाल होने वाले पत्थर

  9. मूर्तियों में लगे गहनों के पत्थर

  10. ट्रेडिंग के लिए खरीदे गए semi-precious स्टोन्स


🟡 0.5% GST:

ये रेट हाथ से बनी चीज़ों या खास सरकारी योजनाओं के तहत कुछ चीज़ों पर लगता है, और कई बार ये CGST 0.5% + SGST 0.5% = Total 1% के रूप में होता है।

उदाहरण:

  1. गोल्ड (सोना) की बिक्री

  2. डायमंड जूलरी

  3. Precious stones वाली जूलरी

  4. कामधेनु योजना के तहत कुछ चीजें

  5. खास क्राफ्ट्स में बनी चीजें

  6. कुछ सरकारी योजनाओं के तहत बीमा

  7. विशेष दर्जे की handloom वस्तुएं

  8. कारीगरों द्वारा बनाए गए गहने

  9. कुछ state-sponsored ट्रेड आइटम्स

  10. hand-made सिंदूर या काजल


🟢 3% GST:

ये रेट मुख्य रूप से सोना, चांदी, डायमंड और जूलरी पर लगता है।

उदाहरण:

  1. सोने की ईंट या बिस्किट

  2. चांदी की प्लेट

  3. डायमंड जूलरी

  4. सोने की अंगूठी

  5. कान की बालियां

  6. सोने की चेन

  7. चांदी की पूजा की थाली

  8. ब्रेसलेट

  9. जड़ाऊ सेट

  10. गोल्ड कॉइन


🔢 GST स्लैब रेट्स (Tax Slab Rates in GST)

भारत में GST को 4 मुख्य टैक्स स्लैब में बांटा गया है:

  1. 5% - यह दर ज़रूरी और आम उपयोग की वस्तुओं पर लगती है।

  2. 12% - सामान्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं इस स्लैब में आती हैं।

  3. 18% - यह मानक टैक्स रेट है और अधिकांश सेवाओं व प्रोडक्ट्स पर लागू होती है।

  4. 28% - यह उच्च टैक्स दर लक्ज़री आइटम्स और तंबाकू आदि पर लागू होती है।

✅ अब हर स्लैब में आने वाले 10-10 आइटम्स के उदाहरण:


1️⃣ 5% GST वाले आइटम्स:

  1. पैकेट वाला दूध

  2. गेहूं

  3. चावल

  4. ब्रेड

  5. हैंडलूम से बने उत्पाद

  6. किताबें

  7. प्राकृतिक शहद

  8. स्लेट और इरेज़र

  9. बस की टिकट

  10. पेंसिल और बेसिक स्टेशनरी


2️⃣ 12% GST वाले आइटम्स:

  1. मक्खन (बटर)

  2. चॉकलेट

  3. फर्नीचर जैसे प्लाईवुड

  4. प्रोसेस्ड फूड

  5. कंबल

  6. सैनिटरी नैपकिन

  7. आयुर्वेदिक दवाइयां

  8. गैर-AC रेस्टोरेंट की सेवाएं

  9. प्रिंटर

  10. पंखा (Fan)


3️⃣ 18% GST वाले आइटम्स:

  1. डियोड्रेंट

  2. टूथपेस्ट

  3. हेयर ऑयल

  4. शैम्पू

  5. AC रेस्टोरेंट की सेवाएं

  6. मोबाइल फोन

  7. लैपटॉप

  8. इंटरनेट सर्विस

  9. एयर कंडीशनर की सर्विस

  10. ₹100 से ऊपर के सिनेमा टिकट


4️⃣ 28% GST वाले आइटम्स:

  1. सिगरेट

  2. पान मसाला

  3. एसी (Air Conditioner)

  4. रेफ्रिजरेटर

  5. लक्ज़री कारें

  6. 600cc से ऊपर की बाइक

  7. फ्लेवर्ड जूस (Aerated)

  8. 32 इंच से बड़ा टीवी

  9. गेमिंग कंसोल

  10. ₹500 से ऊपर के प्रीमियम मूवी टिकट

GST INVOICING LOGICS

बहुत बढ़िया! अब मैं तुम्हें CGST, SGST, IGST और UTGST सब कुछ उदाहरणों के साथ एकदम आसान भाषा में समझाता हूँ।


🔷 1. CGST + SGST कब लगता है?

➤ यह तब लगता है जब सप्लाई एक ही राज्य के अंदर होती है यानी Intra-State Supply

🧾 उदाहरण:
राम उत्तर प्रदेश (UP) के लखनऊ में एक दुकानदार से मोबाइल खरीदता है।

  • दुकानदार भी UP में है

  • ग्राहक भी UP में है

➡ माल और ग्राहक एक ही राज्य में हैं, तो:

GST रेट मान लो = 18%

  • CGST = 9%

  • SGST = 9%

🔹 पैसा ऐसे बंटेगा:

  • 9% केंद्र सरकार को (CGST)

  • 9% राज्य सरकार को (SGST)


🔶 2. IGST कब लगता है?

➤ यह तब लगता है जब सप्लाई दो अलग-अलग राज्यों के बीच होती है, यानी Inter-State Supply

🧾 उदाहरण:
सीमा महाराष्ट्र (Mumbai) में रहती है और उसने दिल्ली की एक वेबसाइट से लैपटॉप मंगवाया।

  • Seller: दिल्ली

  • Buyer: महाराष्ट्र

➡ माल एक राज्य से दूसरे राज्य में जा रहा है, तो:

GST रेट = 18%

  • पूरा का पूरा 18% लगेगा IGST के रूप में।

🔹 पैसा ऐसे जाता है:

  • IGST पूरा केंद्र सरकार को जाता है

  • बाद में केंद्र, राज्य को उसका हिस्सा देता है


🟨 3. CGST + UTGST कब लगता है?

➤ यह तब लगता है जब सप्लाई Union Territory (UT) के अंदर ही होती है, यानी Intra-UT Supply

🧾 उदाहरण:
रवि चंडीगढ़ में रहता है और वहीं की एक दुकान से फ्रिज खरीदता है।

  • Seller: चंडीगढ़

  • Buyer: चंडीगढ़

  • यानी Union Territory के अंदर सप्लाई है

➡ तो SGST नहीं लगेगा, क्योंकि UT में State Govt नहीं होती।

GST रेट = 18%

  • CGST = 9%

  • UTGST = 9%

🔹 पैसा ऐसे बंटेगा:

  • 9% केंद्र सरकार को (CGST)

  • 9% Union Territory सरकार को (UTGST)


🔁 एक लाइन में रिवीजन:

सप्लाई की स्थिति टैक्स लगता है
एक ही राज्य में (Intra-State) CGST + SGST
दो राज्यों के बीच (Inter-State) IGST
Union Territory के अंदर CGST + UTGST

📚 Bonus Tip:

अगर आप एक UT से दूसरे राज्य में माल भेजते हो, तो भी IGST ही लगेगा।

🧾 Example:
दादरा और नगर हवेली से किसी ने गुजरात में माल भेजा — तो ये Inter-State Supply मानी जाएगी और IGST लगेगा। 


बिलकुल! नीचे सभी भारत के राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) के GST State Codes को बिना टेबल के लिस्ट फॉर्म में लिखा गया है — एकदम साफ़-सुथरे तरीके से ✅


भारत के सभी राज्य और उनके GST State Codes:

  1. जम्मू और कश्मीर – 01

  2. हिमाचल प्रदेश – 02

  3. पंजाब – 03

  4. चंडीगढ़ – 04

  5. उत्तराखंड – 05

  6. हरियाणा – 06

  7. दिल्ली – 07

  8. राजस्थान – 08

  9. उत्तर प्रदेश – 09

  10. बिहार – 10

  11. सिक्किम – 11

  12. अरुणाचल प्रदेश – 12

  13. नागालैंड – 13

  14. मणिपुर – 14

  15. मिज़ोरम – 15

  16. त्रिपुरा – 16

  17. मेघालय – 17

  18. असम – 18

  19. पश्चिम बंगाल – 19

  20. झारखंड – 20

  21. ओडिशा – 21

  22. छत्तीसगढ़ – 22

  23. मध्य प्रदेश – 23

  24. गुजरात – 24

  25. दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव – 26

  26. महाराष्ट्र – 27

  27. आंध्र प्रदेश (नया) – 37

  28. कर्नाटक – 29

  29. गोवा – 30

  30. लद्दाख – 38

  31. केरल – 32

  32. तमिलनाडु – 33

  33. पुडुचेरी – 34

  34. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह – 35

  35. तेलंगाना – 36

  36. लक्षद्वीप – 31


📌 ध्यान दो:

  • पुराना आंध्र प्रदेश का कोड 28 था, लेकिन अब तेलंगाना = 36 और नया आंध्र प्रदेश = 37 कर दिया गया है।

  • दादरा नगर हवेली और दमन-दीव का अब एक साथ कोड है: 26

  • लद्दाख अलग होकर नया कोड 38 हो गया है।        




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